पिता एक विशाल बरगद के पेड़ के समान हैं जिसके नीचे हमेशा बच्चो को शीतल ठंडी छांव मिलती हैं | इसीलिए लेकर आयी हूँ इस ब्लॉग में पिता पर अनमोल वचन |
पिता हमारे जीवन की बगिया के माली जैसे हैं जो हर संभव ध्यान देते है कि हम फूलों की तरह खिलखिलाते रहें।
जरुर पढ़िए
|परिवार के मुखिया पर समर्पित शायरी|
पिता पर अनमोल वचन | 79 बेहतरीन रचनाएं
पिता पर बेहतरीन कोट्स। 79 हृदयस्पर्शी कविताएँ
1)भगवान से मिलने का मन में,
जब-जब विचार आया
घर में पिता के रूप में,
उन्हें सदा अपने क़रीब ही पाया।
2)जीवन में पिता ही होते है,
सबसे बड़े गुरु हर पल
करते हैं दिल से प्रणाम और दुआ,
ख़ुश रहें आप पलपल।
3)बचपन के चल मेरे घोड़े की टिक-टिक,
सवारी की याद बहुत आती है
परी हूँ न मैं उनकी मेरी होती पूरी हर ज़िद,
रह-रह याद दिलाती है।
4)पढ़ने के समय न मिलती थी कोई रियायत,
रहता था एक अंजाना सा फ़ीयर
आँखों से ही समझ जाते थे मास्टर जी से भी ज़्यादा,
है सख़्त पापा डियर।
5)सुन मेरी तारीफ़ औरों के लबों से
,बाबा रे!कितना ख़ुश हो जाते थे
ये पिता ही होते है जो बच्चों की तरक़्क़ी में,
ख़ुद को आगे बढ़ा पाते हैं।
6)पिता हैं तो सारी दुनिया ज़हान की ख़ुशियाँ,
संग साथ दिखतीं हैं
वरना तमाम खिलौनों के बीच में भी,
हँसी रुठी हुई सी लगती है।
7)उस बच्चे की मायूसी महसूस कीजिए,
जिस के सिर पर नहीं पिता की छत्रछाया
मीलों बरगद के पेड़ तो लगे है
,पर नहीं मिलती वो ठंडी स्नेहछाया।
8)याद है मेरी नौकरी की पहली तनख़्वाह पर,
ख़ुशी के शब्दों की वो गुफ़्तगू
पिता की गहरी साँस कह गई कि चिंता नहीं अब,
बेटा पूरी करेगा सारी आरज़ू।
9)अक्सर तेज़ डाँट के बाद पिता का,
यूँ मेरे कमरे के बाहर चक्कर लगाना
दुखी हो जाते हैं अपनी ही बात कह,
क्यूँकि बेटा यूँ तो है उनका दीवाना।
10)सुनो!ये देर से आना शोभा नहीं देता,
समय पर घर आ जाया करो
अरे! बेटे को काम ही बहुत है ये दूसरों को
आप भी तो पापा बताया न करो।
11)माँ कब तक इंतज़ार में बैठी रहेगी,
तुम्हारे खाने के लिए देखो!रोज़ रोज़ यूँ
पर आप क्यूँ बैठे हो पापा
,ये प्यार जताते हो मुझे आप भी हर रोज़ क्यूँ।
12)एक उस महँगे खिलौनें को मन था मेरा,
सिर्फ़ जानता था मैं ही इस बात को
पापा ने चुपचाप ला दहलीज़ पर रख दिया,
अचरज है पता चल गया कैसे आपको।
13)ईश्वर हर जगह नहीं आ सकते थे,
पिता का रूप दे भेज दिया हर घर में
नादान थे हम ही ये बात ही समझने में,
बहुत ज़्यादा समय लगाया हमने।
14)पापा की डाँट एक कुम्हार के चाक पर,
बनती मिट्टी का रूप ले जीवन बनाती है
जीवन संध्या में मगर ये बात बहुत देर से,
न जाने क्यूँ सबको समझ में आती है।
15)जीवन में आज देखो न पापा,
छू ली मैंने बुलंदी और शोहरत
दिन रात की आपकी अनवरत मेहनत व
नेक सलाह की ही बदौलत।
16)दोस्तों के बीच सबसे लोकप्रिय दोस्त थे,
सब कहते सबसे थे अच्छे
बड़ों के रहे सदा ग़मगुसार,
बच्चों के बीच बन जाते थे मासूम से बच्चे।
(ग़मगुसार=गम हरने वाला)
17)रही पिता की सदा यही सीख,
जीवन में न मानना कभी भी हार,
क़दम दर क़दम मिलेंगीं मुसीबतें,
हौसला कम कर न हो जाना बेज़ार।
18)पिता से बढ़ कर नहीं होता कोई भी
मार्गदर्शक जीवन में कभी
अमूल्य ज्ञान का रहता अतुलनीय भंडार,
ख़ज़ाना कम ही नहीं होता कभी भी।
19)बच्चों के नाम से हो परिचय पिता का,
गर्व से फूलता सीना होता बहुत ग़रूर
होती तमन्ना हर बच्चे की भी काम करें कुछ ऐसा,
जीवन में वो भी ज़रूर।
20)पापा के जन्मदिन पर दूँ क्या तोहफ़ा,
कौन सा अनमोल उपहार
चंद पंक्तियाँ लिखूँ उनकी ख़िदमत में,
या महकते गुलाबों का दूँ हार।
21)आँधी तूफ़ाँ अक्सर आ समय-समय पर
मुझे डराना चाहते है
पिता संभाल पतवार तभी,नैय्या साहिल पर
न जाने कैसे ले आते है।
22)सोचता हूँ दुनिया की अजब है
रीत और अजब माया
पल में बदलता समाँ,
न हो जिसके ऊपर पिता का साया।
23)सुख दुःख की न करते कभी परवाह पिता,
निस्वार्थ भाव से रखते सबका ख़्याल
उँगली पकड़ सिखाया जिसने,छोड़ देते पल में,
निष्ठुरता पर ऐसी उठने चाहिए सवाल।
24)आज फिर दूर आसमां से देखा
मैंने टूटता एक तारा
शायद पापा ने याद में मेरी
किया धरती पर एक फेरा।
25)बरगद से विशाल पेड़ की जड़े हैं पिता,
संभालें रहते सबको दिनरात
वचन बोलते कठोर,
पर दिल में प्यार मक्खन मलाई से रखते हैं जज़्बात।
26)पिता की हर बात के मतलब,
समझ आए ज़रा देर के बाद
स्वयं पिता बन कर समझ पाया हूँ,
उनके मन के असली जज़्बात।
27)सुबह की वो मीठी नींद और उस पर आती पापा की कड़क आवाज़
आज इस मुक़ाम पर पहुँच कर समझते हैं, अब अनुशासन की बात।
28)दुनिया की जंग समय के साथ,
ख़त्म हो जाती है हर जगह पर अपनेआप
परिवार को एक जुट बांधे रखने में,
नहीं सच में पापा आप का जवाब।
29)नीम का पेड़ भी आँगन में बाट जोहता है,
हम सब बच्चों के संग
देख पापा को उछलते ज्यूँ ही,
पत्तियाँ भी झूम-झूम गाए दिखा निराले से ढंग।
30)गाँव में हर कोई पिता के नाम से,
हमें एकदम से जान गया
यहाँ शहर में पड़ोस में रहता है कौन,
जानने में ज़माना बीत गया।
31)कड़वी नीम की तरह पिता की बातें,
कभी चुभ जाती थी दिल पे
ज़माने में सधे व्यक्तित्व का दर्जा मिलेगा,
ये बात समझ में आयी देर से।
32)हर छोटे बड़े ईनाम मिलने पर,
ख़ुश बहुत हो जाते हैं पापा
ये कैसा अनमोल रिश्ता है,
आप तो बस रब हैं हमारे पापा।
33)सपनें देखे थे मैंने पर उनमें जान डाल पूरा किया
जैसे करता कोई जादूगर
भला दिन रात पापा कैसे इतना कुछ कर लेते है,
हैरान हूँ बहुत ये सोच कर।
34)एक दिन यूँही लिया जो मैंने,
पापा का हाथ अपने हाथों में
खुरदरापन ब्यां कर गया बिन कहें,
सब कुछ आँखों ही आँखों में।
35)खुदा को ढूँढने का चढ़ा था,
मुझे कुछ इस तरह से फ़ितूर
पास ही खुदा मेरे था और मैं नादान रहा,
खोजता उन्हें हर जगह फ़िज़ूल।
36)पिता से ही बना हुआ था ,मेरा अस्तित्व मेरी दुनिया मेरा वजूद
घर से क़दम रखते ही बाहर,
मैं कौन हूँ,कहीं भी नहीं देना पड़ा कोई सबूत।
37)डर भी कुछ होता है,
था मैं नावाक़िफ़ इस बात से एक अरसे तक
रुखसत लेते ही पापा के हालात ठीक नहीं,
समझ में आया उसी वक़्त।
38)लूडो खेलो चाहे साँप सीढ़ी,
जीतता मैं ही था बिना कारण के
पिता अक्सर यूँही हार जाते हैं,
मनोबल बढ़ाने को अपने बच्चों के।
39)वक़्त बदला सोच बदली और बदलते लोग
अपने एकदम से ख़यालात
पिता थे उसूल वाले न हुए टस से मस,
चाहे कितने भी बुरे हुए हालात।
40)गुलाब की ख़ुशबू को वही लोग
सूँघ कर लुत्फ़ उठाया करते है
कहते थे पापा,
काँटों से घायल होने की परवाह जो नहीं कभी करते है।
पिता पर सुविचार वाली शायरी
41)ज़िद के लिए ज़िद करना,
नहीं शोभा देता संस्कारी व्यक्ति को
बात जब अपनों के सम्मान की हो,
पापा की सीख,तो स्वयं झुक जाया करते हैं।
42)जब ख़ुद बाप बनोगे तो ही जानोगे,
मेहनत आख़िर किस चिड़िया का नाम है
सच में जान गए हैं,कम आमदनी में ख़्वाहिशें
जो पूरी करे,वो पापा का ही नाम हैं।
43)आज महगें खिलौने देने के बावजूद,
बच्चें अपने माता पिता से रुठे रहते है
एक हम थे गुल्लक में जमा चंद सिक्कों से ही,
ख़ुश बहुत हुआ करते थे।
44)ऊँगली पकड़ चलना सिखाया,
निभाया हर हाल हर छोटा बड़ा फ़र्ज
पिता के ऋण को आज तक न उतार पाया कोई भी,
है ये तो भावनाओं का क़र्ज़।
45)घर में कभी किसी अलार्म घड़ी की
महसूस नहीं हुई ज़रूरत
हल्की सी खंखार ही काफ़ी थी पापा की,
उठाने नींद से,थी ऐसी हकूमत।
46)हर मुश्किल में एक अडिग आधार स्तंभ हैं पिता,
जीवन में गोवर्धन पर्वत से
हर वक़्त आश्रय-दान से,सागर की लहरों की तरह
अविरल धारा प्रवाह से।
47)अंगुली पकड़ क़दम दर क़दम,
सिखाने की कला में पारंगत है पिता
बच्चों की हर छोटी बड़ी सफलता पर,
ख़ुश होते मासूम निच्छल बाल मन पिता।
48)ब्रह्मांड रचा ईश्वर ने है सत्य,
पर कहाँ हैं,खोज जारी है सदियों से
पिता में बसा अपना अक्स,ईश्वर ने प्रतिपूर्ति,
भेजी अपनी फिर इस धरा पे।
49)कोमल हृदय पिता में बसे,
मेरे ईश्वर की प्रतिपूर्ति जो खेते मेरी नाँव
बरगद के विशालकाय पेड़ बन,
देते रहें सदा मुझे ठंडी -ठंडी छांव।
50)पनघट से निकल पगडंडियाँ पार कर ऊँचा मकाँ
हासिल करने का सफ़र आसान न था
पर पापा की गुरु सीख ने इसे हासिल करने के
जज़्बे से आंसा बहुत बना दिया।
51)पापा की सीख थी,
अच्छी सोच देती है जीवन में सुखद परिणाम
बुरी सोच दुखाएँ मन को भी,
दिल को भी मिलते भारी अंजाम।
52)अश्रुओं का सैलाब जब-जब
जीवन में उमड़-उमड़ आया
हाथों में भर लिया आगे बढ़ जिसने,
वो है पिता का स्नेह भरा साया।
53)ये जीवन है,सूरज चाँद की तरह
सुख-दुख रहेंगे संग साथ
दुख को बनाना दोस्त पापा बताते,
सुख भी महसूस कराएँगा साथ।
54)सब्र बेसब्र हो जीवन में जब,
धैर्य की परीक्षा लेने पर आता है
पिता की तस्वीर को देख,सब्र ख़ुदबख़ुद
सुकून में बदल जाता है।
पिता का महत्त्व स्टेट्स |
55)मिट्टी के घरों में अक्सर,पापा कहते,
दिखता है ज़्यादा आपसी भाईचारा
पैसे ने क्यूँकि वहाँ अभी,
स्वार्थ का नहीं बुना है कोई भी नक़ली जाला।
दुनिया भर चाहे घूमें, इस कोने से उस कोने तक,
कोई भी इंसान
“ईस्ट हो या वेस्ट होम इज दि बेस्ट”,
ढूँढ़े बस हर कोई अपना ही गुलिस्तान।
56)आग़ोश में बेफ़िक्री से सोता है
जब मासूम नन्हा फरिश्ता
दुनिया के रंजो-ग़म से दूर
यह अनमोल पवित्र रिश्ता।
ये पल जीवन का सुंदर अनमोल
ख़ज़ाना समेटे है
पिता-पुत्र का सान्निध्य जन्नत सा
सौंदर्य लपेटे है।
57)लगता है चंदा मामा के पास है,
कर रहें है हम ज़ूस्तज़ू
साथ चरखे वाली नानी से,
कर रहे है आप क्या वहाँ गुफ़्तगू
मुझे को मिलने की बहुत तलब लगी है आप से,
सुनो!न पापा
ज़िद है मेरी,मालूम है किसी भी तरीक़े से
पूरी करेंगे आप मेरी आरज़ू।
58)पिता भी गहरी सकूँ की श्वास में,
महसूस करते स्वयं को उल्लासित
अपना अंश सीने से लगा के होता,
मन बहुत ही ज़्यादा गौरवान्वित।
दुनिया की बुरी नज़रों से बचा रखूँगा,
सदा अपने लाल को सुरक्षित
छल-कपट से दूर बनाऊँगा एक अच्छा इंसा,
ज़िम्मेदार बने सबका रक्षित।
59)काश! ज़िंदगी बस ऐसी ही,
सरल सौम्य भाव ज़हीन हों
पापा के प्यार भरे रिश्तों की,
एक ख़ूबसूरत मिसाल हसीन हों।
दुनिया में मिलते है यूँ तो हज़ारों लोग,
हर रोज़ अलग अलग किरदार में
पिता तो एक ईश्वरीय आशीर्वाद है,
रूह को ठंडक पहुँचाए हर बार में।
60)सुना था जन्म पर मेरे,
माँ-पापा बहुत ही हर्षाये थे
हलवा-पूरी -खीर व संग साथ में
लड्डू भी बटवाएँ थे
सरस्वती पुत्र पिता के घर ख़ुद आईं
माँ सरस्वती चल कर
ऐसा कह गोद उठाया था-
आँखो में ख़ुशी के नीर भर आए थे|
61)जीवन हमारा व्यवस्थित चले,
कितना यत्न कर सहूलियत बनाते हैं
एक हम है बिन बात बेवजह
,कई बार यूँही पापा पे चिल्ला जाते है।
आज जब अपनी संतान का व्यवहार देख
,दिल हुआ बहुत दुखी
चोट कितनी पहुँचाई आपको,
दिल से माफ़ी की गुहार लगाते है।
62)पिता कितना बच्चों को जानते हैं,
स्वयं पिता बन के जाना हमने
ज़ुबा लड़खड़ा रही थी बेटे की हमारे,
यानि ग़लती बड़ी की है उसने
हौले से काँधे पर हाथ रख,निगाहों से जानना चाहा था हमने
फफक कर गले से लग रो पड़ा था ऐसे,
निर्दोष है ग़लत नहीं किया उसने।
63)माना नाराज़ हैं आप पापा हम से
दूर विदेश जो चले आए तुम्हें यहाँ छोड़ के
कम कमा लेना पर पास ही रहना अपनों के
समझ अब आया छोड़छाड़ आए सब वही अब छोड़ के।
64)दिन रात का वो श्रम-परिश्रम,
पसीने से तरबतर भीगती क़मीज़ की गंध
हासिल हुई पापा सब इज़्ज़त शोहरत व
मान सम्मान आपकी बदौलत
माँ से गुपचुप लगाते हिसाब किताब,
सो जाने पर अक्सर हमारे भविष्य के लिए
आज आँखें हुई नम क्या इतना भी कोई,
ध्यान रखता है औलाद के लिए |
65)किताबी ज्ञान बहुत मिला स्कूल व किताबों से
जीवन के पाठ मगर पिता ही बच्चों को सिखाते है
जब सारी दुनिया घोषित कर देती है आपको असफल
सफलता के गुर पिता आगे बढ़ कर फिर बताते है।
66)गरमियों की छुट्टी में,
पापा की चेहरे की चमक बढ़ जाया करती थी
क्यूँकि बुआ व चाचा के परिवार से,
गुफ़्तगू जो हुआ करती थी
कहीं गोलगप्पों की चटकार,
कही जलेबी की चाशनी में उँगलियों को डूबूँना
कहीं ताश में चुपके से,
एक दूजे के पत्तों पर निगाह होती थी।
67)एक अदृश्य छाया हर वक़्त,
हर पल साथ के अहसास पिता का
फ़ूल की नाज़ुक पंखुरी सा,
एक सौम्य मुस्कान लिए अधरों पर गीत गाने का
एक मीठे स्त्रोत की मधुर गूँज,
करते नीर के गुंजान सा
पर्वत की दृढ़ता व संकल्प लिए रखने
ख़ुशहाल अपने परिवार हर वक़्त हर पल साथ सा|
68)ख़्वाबों ख़्यालों में बसी,
उम्मीदें-आशियाँ की एक ख़ूबसूरत तस्वीर
माँ के आँचल की छांव व पापा की आँखों में,
झलकती प्यार की तासीर।
नाज-नखरें उठाते करते पूरी हर ज़िद,
अपनी लाडली की होते न्योछावर
ससुराल भेजने की सोच नयनों से बहाते,
रोज़-ए-जजा जैसे नदियाँ का नीर।
(रोज़-ए-जजा=प्रलय का दिन।)
69)सुन रे मनवा जग की है यही बस पुरानी रीत
जीवन की जंग है ये तो,पापा कहते क्या हार क्या जीत
सबक़ देती हर हार,मन से नहीं हारना कभी भी
क्यूँकि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।
70)क़दम दर क़दम ऊँगली पकड़,
जो चलना सिखाते है
छोटी छोटी सफलता पर भी,
ख़ुशियाँ ख़ूब दिखाते है
जीवन बना जीवन मूल्यों संग
,ये पाठ सदा पढ़ाते है
ईश्वर की प्रतिपूर्ति बन पिता,
जीवन भर साथ निभाते है।
पिता पर बेमिसाल वचन
71)ऐसा नहीं है कि दिल उदास कभी नहीं होता
कभी कभी सब कुछ होते भी कुछ नहीं होता।
जब जब ईश्वर को याद किया मैंने
तब-तब पापा में ही पाया उन्हें मैंने।
72)मंदिर क्यों जाना,रहते है वो तो नज़रों में यहीं
दिल में बसे ईश्वर हैं मेरे,बसें हैं दिल के अन्दर बस यहीं
बादे -ए-सुबह के आफ़ताब की किरणों की चमक है ज्यों
पिता से घर का उजाला बना रहता बिलकुल ज्यों का त्यों|
73) पिता एक नाम स्नेह का,प्यार का दुलार का
मान का सम्मान का,ग़ुरूर का अभिमान का।
पिता एक आश्रयदाता,हैं एक हमसाया
दुखों ने जब जब भी,हमें जीवन में डराया।
74)जीवन में बहुत मिलते है जताते है
कुछ ज्यादा ही अपनापन
आगे बढ़ने को हिम्मत बंधाते है
वक्त-बेवक्त दिखा नकलीपन
पर सोच से आगे जाने पर दिखी चमक
पापा के चेहरे पर वो थी गज़ब
खुल गई पोल उन सभी की मुखौटे
लगाये बैठे थे अजब-अजब |
75)जब-जब कोई बेटी शादी करके विदा हो,
अपनी ससुराल जाती है
मन ही मन माँ-पिता की ज़ुबा पर,गंगा नहाने की बात
ख़ुदबख़ुद आ जाती है।
बिटिया हूँ तुम्हारे कलेजे की,
ये इतना बोझ क्यूँ हैं सबके दिलों पर छाया
कहते थे जूही की कली,मेरी घर का ग़ुरूर,
फिर एकदम से ही कर देते हो पराया।
न ही ऐसी कोई सोच रखिए
न ही ऐसी रस्मों को अब मानिए
बेटियाँ कर रही नाम ऊँचा हर क्षेत्र में,
इस प्रथा से उसे अब मत बाँधिए।
76)वो लाचार बाप
अक्सर ज़ेहन में सबके,पिता के नाम से क्यों
एक लाचार बेबस असहाय चित्र उभरता है
एक बेबस सा दुखी मन से भरा कुछ शायद ठीक नहीं किया
ये दंश सा लिए,खुदबख़ुद,सोच विचार सा करता है।
फलहीन लगती उसे तब वो शिक्षा,जिसमें कमी संस्कारों की है
जीवन भर हर ज़रूरत पूरी करते-ये कैसी व्यवस्था की लाचारी है।
बेटियाँ दिल का टुकड़ा संवेदनशील व करुणा की मूर्ति हैं
वही बेटी ससुराल में क्यों बदली-क्यों पिता वहाँ के मजबूर हैं।
पसंद नापसंद के उनका ध्यान रखें,बन हम अन्नपूर्णा सुबहों शाम
मरने पर कैसा ब्रह्मभोज,गर जीते जी नहीं रखा उन्हें दिल के पास।
वर्चुअल दुनिया में खोए-बड़ी बड़ी डिग्री ले हम बातें ख़ूब बनाते हैं
इतने ज्ञानी है जब सब-तो वृद्धाश्रम अस्तित्व में कैसे आते हैं।
बिन पिता सिर्फ़ घर नहीं,ये दुनिया जहाँ भी वीरान हैं
वो लाचार बाप नहीं-वें हमारा मान व हमारी शान हैं।
77)खुदाया मिलने ख़्वाब जो खुदा से मिलने को आया
मुड़ के देखा पिता में ही वो अक्स बाख़ुदा नज़र आया।
मान-सम्मान,आन बान शान,अभिमान स्वाभिमान नाम सुने थे अब तक
पिता के विशाल उदार हृदय मन से,अर्थ अब जीवन में समझ आया।
आँखों में अश्क़ बहने को तत्पर थे,आबशॉर की तरह
फूलों की टोकरी लिए पिता का हाथ,संभालने को आगे आया।
तन्हा-तन्हा यूँ महसूस किया भीड़ में ख़ुद को जब भी,ऐ बेकल-दिल
संग-संग कोई चल रहा है,अहसास ये ख़ुद से न जाने कैसे आया।
अजब है ये दुनिया,अजब-ग़ज़ब है इसके तौर-तरीक़े,क्या करिए
मंज़िले-मक़सूद हासिल करने को रास्ता चुनना सही,मशवरा यही आया।
साज़िशें रचता हो ज़माना जब,और ग़ैरमुमकिन लगे पाना कुछ भी
गोवर्धन पर्वत थामें अड्डिग चट्टान का सा,स्नेह भरा आश्रय,पिता से ही आया।
(आबशॉर=झरना।मंज़िले-मक़सूद=मनचाहा लक्ष्य प्राप्ति की चाह।)
78)सुना है मैंने माँ से,जन्म पर मेरे विद्वान पिता ने,जब गोद में मुझे उठाया था
ख़ुशी के आँसू थे आँखों में,होंठों पर मंद मंद मुस्कान का प्यार छलकाया था।
उँगली पकड़ संग घुमाते थे,और नयी नयी बातें भी ख़ूब बताया करते थे
जीवन के मूलमंत्र को कहानियों में,बन पात्र स्वयं ख़ूब सिखाया करते थे।
क़दम दर क़दम स्वयं अपने लिए,निर्णयों की क़दर करना सिखाते थे
अच्छा या बुरा सबक़ मिलता दोनो से ही,ये भी बताया करते थे।
अविरल प्रवाह की धारा बन जीवन को सादा व निर्मल रखना ज़रूरी है
दिखावे से तो बड़े बड़े राजपाट धूल में मिलें है,ये अक्सर सुनाया करते थे।
ईश्वर की अनुपम कृति हो तुम,सृजनहार इस पृथ्वी पर तुम ही हो
धरा की ख़ूबसूरती कैसे बढ़ा सकती हो,आत्मचिंतन से,ख़ूब सिखाया करते थे।
ईश्वर को नहीं देखा मैंने,पढ़ा सुना सदियों से,हमेशा यूँ मन को समझाया करते थे
जीवित भगवान है पिता ज़मीं पर,स्नेह-आश्रय का माधुर्य बरसाया करते थे।
79)ऐ-मेरे जीवित भगवान!!
क्या लिखूँ आप पर, ऐ, मेरे जीवित भगवान
लोभ,मोह क्रोध से दूर रहें, न किया कभी कोई अभिमान
शहद में भीगे शब्द,सौम्य मूरत,रहती चेहरे पर हरदम मुस्कान
मिस्टर पंक्चुअल, मिस्टर स्माइलिंग,बनी आप की पहचान।
गीता को धारे मन से, कहा,रखो,समभाव हर स्थिति में
कैसे किया आत्मसात,कैसे,प्राप्त हुआ आपको ये परम ज्ञान।
अथक परिश्रम,अदम्य उत्साह,न किया कभी विश्राम
जीवन हर पल जीने का,कहते,अंतिम क्षण ही बस करूँगा आराम।
एक प्रेरणा,एक सोच, एक आशावादी व्यक्तित्व
सदियों में विधाता रचता है,ऐसा अप्रतिम,अनूठा इंसान।
क़लम के जादूगर,विशाल हृदय व ओज भरी थी वाणी
हर शब्द गूँजता मंच पर,ऐसे,लगता मानो सिंहकीहुंकार।
थे आप प्रभु की अनुपम कृति,
मिला होगा आपको श्रीचरणों में स्थान
है गर पुनर्जन्म सच में, बस फिर मिले
आप की ही छत्रछाया , है यहीं अरमान।
क्या लिखूँ आप पर,ऐ,मेरे जीवित भगवान।
बहुत दिल के सच्चे उद्गारों से लिखी पिता पर अनमोल वचन वाली शायरी आपको जरुर पसंद आएगी व आप भी कह उठेंगे, “ऐ-मेरे ईश्वरीय पिता दिल से तुम्हें शत् शत् प्रणाम,आपका ही साथ मिले हर जनम में,जैसे मिलें कोई ईनाम”
अपने जज़्बातों को मेरे साथ Comment Box में ज़रूर साँझा करिए। बहुत अच्छा लगेगा|

रास्ता था लम्बा, मुश्किलें थी क्रूर
दिल में लेकिन मशाल जला कर चली आयी मैं इतनी दूर।