रिश्तों में उम्मीद टूटने पर शायरी यानी जीवन के उस सच पर लिखने की वेदना को शब्दों में ढालने का प्रयास है जिस से हर व्यक्ति कभी न कभी रूबरू होता ही है।

जीवन में उम्मीद एक सबसे सुंदर शब्द है जो हर हाल जीने का होंसला  बनाये रखता है पर यदि आस ही ख़त्म हो जाये तो जीवन व्यर्थ लगने लगता है।उम्मीद न टूटे,आइए मिलकर इस ब्लॉग में पढ़ते है|

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रिश्तों में उम्मीद टूटने पर शायरी

रिश्तों में उम्मीद टूटने पर शायरी,बताए जीवन की त्रासदी सारी

संबंधों में आस टूटने पर कविताएँ।55 दर्द भरी कविताएँ

1)उम्मीद है तभी तो,जीवन अर्थयुक्त है

बिन इसके तो,सब ही व्यर्थ है।

 

2)उम्मीद के साथ-साथ चल रहा था

हाथ छूटा जो,कहाँ फिर संभला था।

 

3)उम्मीदें जब टूट जाये,तो क्या कीजिए

अच्छे वक्त का सब्र से,इंतज़ार कीजिए।

 

4)ख़ुद से किए थे जो वायदे,पल में टूट गए

ख़ंजर घोंप वो सीने में,चुपचाप निकल गए।

 

5)ओराक-ए-शजर था सब्ज़,हरा-भरा सदा

उम्मीद टूटते ही,दौरें-ख़िज़ां दिखा हरतरफ़ा।

 

(ओराक-ए-शजर=पेड़ के पत्ते।

सब्ज़-हरा-भरा)

 

6)माँ की सीख थी,उम्मीद को सदा थामे रहना

बुरे वक्त को भी मात दे देगी,यह याद रखना।

 

7)जीवन है सुख के पीछे दुख तो,आ कर डरायेंगे

उम्मीद है ग़र संग,ख़ुद ही डर कर भाग जाएँगे।

 

8)ऊँची भव्य इमारतें,खंडहर से प्रतीत लगते हैं

उम्मीदें टूट कर,जब जीवन को बिखर देते हैं।

 

9)वक्त का बुरा दौर भी,वक्त पे निकल जाता है

टूटी उम्मीद को जुड़ता देख,वही रुक जाता है।

 

10)वक्त ने वो मंजर भी दिखाया,जो सोचे न गए

मरने के हालात थे,पर जीने को मजबूर भी हुए।

 

11)यह तय है ज़िंदगी में,ख़ुशियाँ हासिल होती है

उम्मीद जिस की हर हाल,हर वक्त बनी होती हैं।

 

12)ज़िंदगी दोराहे पर,ला खड़ा करती है अक्सर

टूटी उम्मीदों के संग,लगती बदरंग और बेअसर।

 

दर्द उम्मीद टूटती शायरी 

 

13)रीति-रिवाजों से  माना,जीवन की रीत चलती है

पर क्या एकतरफ़ा,निभाने से बात कभी बनती है।

 

14)दिल के करीबी ही,जीवन की फाँस बन जाते हैं

जानते हुए भी,चुभने वाली बात जब कह जाते हैं।

 

15)भरोसा किसी पर इतना,कभी भी ना किया जाए

उम्मीदें आसानी से तोड़,बेआवाज़ ही चला जाए।

 

16)हंसी में उसकी कुछ ज़्यादा खनक़,दिख रही थी

जमाने की चोट ज़रूर ज़्यादा,उसको लगी थी।

 

17)मासूमियत चेहरे पर, उसके,जितनी ज़्यादा थी

नाउम्मीद करने की आदत,उससे भी ज़्यादा थी।

 

18)दर्द  ही सही मायने में,जीवन भर साथ रहता है

दस्तूर है जमाने का,सुख में ही वो साथ देता है।

 

19)ग़ैरों से ज़्यादा अपनों की चोट,दिल को तड़पाती है

सीने में उठती ज्वाला को,वक्त-बेवक्त सुलगाती है।

 

20)सूखा पेड़ बखूबी अपनी मनोदशा को,दर्शा रहा था

उम्मीदों से कभी वो भी,हरा-भरा खिला-खिला था।

 

21)शब्दों को बहुत नाप-तौल कर,बोलते है अब हम

वक्त ख़राब है कहीं दिल न दुखा दे,किसी का हम।

 

22)मालूम है आगे का रास्ता,कठिन और पथरीला होगा

उम्मीद टूटी है एक पल को,हमेशा तो ऐसा नहीं होगा।

 

23)समुद्र की तेज लहरों ने,डराना चाहा मुझे जब भी

एक पल को सहमा,पर उम्मीद नहीं छोड़ी कभी भी।

 

24)सन्नाटे में नाउम्मीद की आवाज़,लगातार गूंज रही थी

ऐसी क्या हुई ख़ता,ये सवाल ही बस पूछ रही थी।

 

रिश्तों में टीस उठाती शायरी 

 

25)जीवन है यह तो लंबा,आंसुओं को छुपाना पड़ता है

दिल अंदर से टूटता है,पर हंस कर बिताना पड़ता है।

 

26)उम्मीदें टूट कर मोतियों सी,जब बिखर-बिखर जाए

टूटना ख़ुद नहीं,उन्हें फिर से माला में पिरोया जाए।

 

27)उम्मीद टूटी देख,मीठे लोग तसल्ली देने आने लगे

हम तो कड़वे नीम के शौक़ीन है,जान वापस जाने लगे।

 

28)उम्मीदें टूट जाती है एक दिन,जब सब्र का बांध टूट जाए

आख़िर इंतज़ार भला कब तक,किसका किया जाए।

 

29)जमाने से लड़ने का हौंसला,यूँ तो बहुत है हम में

कमजोर अपने ही बनाए तो,हिम्मत टूट जाती हम में।

 

30)बारिश ने ठाना था शायद,कि जम कर ही बरसेंगी आज

दिल भारी था पर सोचा,नाचेंगे हम भी आज सारी रात।

 

31)कुछ कहना चाहें जब भी, तो ज़ुबा ख़ामोश हो जाती है

नाउम्मीद ने घेरा कुछ ऐसा,रोशनी नज़र नहीं आती है।

 

32)ज़िंदगी को कुछ इस तरह से,हमने ढाल लिया है

नाउम्मीदों में भी उम्मीद का,वहम पाल लिया है।

 

33)उम्मीदें टूटती है जब भरोसा अंदर तक हिल जाता है

जिन्दगी तो गुजरती है पर फिर वो विश्वास नहीं आता है|

 

34)नाउम्मीदें जीवन भर,चुभती रहती हैं बन नासूर

रिश्ते सम्भाल तो लिए जाते हैं,नहीं आता फिर वो नूर।

 

35)ईलाज-ए-उम्मीद न जाने क्यूँ, हम आस लगा बैठे

नाउम्मीद करना तो बरसों पुराना, चलन है ज़माने का|

 

36)गिरफ़्तारे-बेबसी का आलम,इस तरह परेशान कर गया

उम्मीदें टूटेंगी एक पल में,भरोसा सा ही सब से उठ गया।

 

(गिरफ़्तारे-बेबसी=असमर्थता का क़ैदी)

 

रिश्तों में दर्द भरी कविताएँ

 

37)एक नन्ही सी पगडंडी पर कदम,पहला जब रखा था

ख़ुद ही सँभलना है,बस उम्मीद को पकड़ कर रखना था।

 

38)पूछते है लोग दिखा हमदर्दी,आख़िर बीमार क्यूँ हो दिखते

अब दिल खोल कैसे दिखाए,कि उम्मीदें दूर हुई है हमसे।

 

39)ग़ैर तो आख़िर ग़ैर हैं होते,चोट दे कर चले जाते हैं

उम्मीद टूटती है तब,ज़ख्म में नमक जब छिड़क जाते है।

 

40)मीठी चाशनी में घुली उसकी बातें,

दिल को आगाह कर जाए

उम्मीदें टूटने की बारी है आई,

दूरी वक्त रहते कर ली जाए।

 

41)जिसे आप चाहे,

वो भी उतनी शिद्दत से चाहे,ज़रूरी नहीं

उम्मीदें तोड़ने वालों की शक्ल अलग से दिखे,

ज़रूरी नहीं।

 

42)ज़िंदगी तबाह भी कर दो,

किसी के लिए चाहे ऐ-बेकल दिल

मोल वही समझता है

जो कभी गुजरा हो ख़ुद किसी पल।

 

43)जब जानबूझकर कर,

कोई दिल दुखाने पर आमादा हो जाए

आंसुओं को क़ाबू कर,

पलकों में ही छुपा जज़्ब  किया जाए।

 

44)कब कैसे कोई आपको नाउम्मीद कर चला जाए,

नहीं जान सकते

गहन तमस् कब चुपके से जीवन में आ जाए,

कह नहीं सकते।

 

45)ख़ुदगर्ज़ होकर उम्मीदें तोड़ना,

शायद किसी के लिए खेल होगा

ऐतबार करने की आदत से मजबूर होना,

हमारी भी नियति का खेल होगा।

 

46)खुश रहो का आशीर्वाद भी लगा,

कुछ ऐसे जैसे जमाने का दस्तूर

दिल जब टूटा हो अंदर से बहुत,

उम्मीदें हुई हो जब चकनाचूर।

 

47)शाम की ढलती मद्धिम रोशनी

और भी ज़्यादा उदास कर गई

क्षितिज पर उगते चाँद से भी,

टूटी उम्मीदें पहली सी जुड़ नहीं पाई।

 

48)बस्ती-ए-शौक़ में,

महफ़िल उनके लिए ही सजाए बैठे थे

चुपके से चले जाएँगे,

शायद बेसबब उम्मीद लिए बैठे थे।

 

उम्मीद टूटने वाली रचनाएँ

 

49)मीठी चाशनी में घुली उसकी बातें,

दिल को आगाह कर जाए

उम्मीदें टूटने की बारी है आई,

दूरी वक्त रहते कर ली जाए।

 

50)दिल चोटिल था,उम्मीद की आस लिए हुआ था,

हुई ऐसी इबरात

जो जैसा दिखे ज़रूरी नहीं,

दिल भी हो वैसा ही उसके पास।

 

(इबरात=एक ऐसी घटना जो सबक़ सीखा सके)

 

51)यूँ इतना परेशान ना हो उम्मीदें टूटने से,

ऐ-मेरे बेज़ार दिल

दरीचे खोल दे,

बारात-ए-नूज़ूम में दिखेगा

हर हाल मह-ए-कामिल।

(बारात-ए-नूज़ूम=तारों की बारात|
मह-ए-कामिल =पूरा चाँद)

 

52)हक़ीक़त -ए-ज़िंदगी उतनी हसीं नहीं होती,

बयाँ जैसी है होती

उम्मीद टूटी हो जब,

चार दिन की ज़िंदगानी भी बहुत लंबी है लगती।

 

53)ग़ैरमुमकिन से दिखते हैं सारे ख़्वाब,

उम्मीदें टूट जब हैं जाती

ग़म-ए-हयात सी ना जाने क्यूँ,

बन गई ज़िंदगी अब सही नहीं जाती।

 

54)गली से गुजर रहा था,

अनजान नासेह एक दिन एक ख़ानाबदोश

गीतों से आगाह किया ,ज़्यादा भरोसा नहीं,

रखना सदा होश।

(नासेह=उपदेशक)

 

55)शांत समुद्र की सतह सा स्वरूप,

हमने भी ढाल लिया है

नाउम्मीदें किसे बताए,

ख़ुद को ही क़सूरवार  मान लिया है।

 

रिश्तों में उम्मीद टूटने पर शायरी लिखते हुए दिल भारी है और जीवन में किसी न किसी मोड़ पर सबको इसका सामना करना पड़ता ही है।

हृदय की उम्मीदें टूटने पर शायरी को पढ़िए ज़रूर।

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